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सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽआप॒ऽओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒। यो᳕ऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सुऽमित्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःऽमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒ ॥ यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे पदार्थ हितकारी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो ये (आपः) प्राण वा जल (ओषधयः) जौ आदि ओषधियाँ (नः) हमारे लिये (सुमित्रियाः) सुन्दर मित्र के समान वर्त्तमान (सन्तु) होवें, वे ही (यः) जो अधर्मी (अस्मान्) हम धर्मात्माओं से (द्वेष्टि) द्वेष करें (च) और (यम्) जिससे (वयम्) हम लोग (द्विष्मः) द्वेष करें (तस्मै) उसके लिये (दुर्मित्रियाः) शत्रु के तुल्य विरुद्ध (सन्तु) होवें ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे अनुकूलता से जीते हुए इन्द्रिय मित्र के तुल्य हितकारी होते, वैसे जलादि पदार्थ भी देश-काल के अनुकूल यथोचित सेवन किये हितकारी और विरुद्ध सेवन किये शत्रु के तुल्य दुःखदायी होते हैं ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कथं पदार्था हितकारिणो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(सुमित्रियाः) शोभनं मित्रमिव वर्त्तमानाः (नः) अस्मभ्यम् (आपः) प्राणा जलानि वा (ओषधयः) यवाद्याः (सन्तु) (दुर्मित्रियाः) शत्रुरिव विरुद्धाः (तस्मै) (सन्तु) (यः) अधर्मी (अस्मान्) धार्मिकान् (द्वेष्टि) अप्रीतयति (यम्) (च) (वयम्) (द्विष्मः) ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या इमा आप ओषधयो नः सुमित्रियाः सन्तु, ता योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मस्तस्मै दुर्मित्रियाः सन्तु ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - यथा जितान्यनुकूलानीन्द्रियाणि मित्रवद्धितकारीणि भवन्ति, तथा जलादयोऽपि पदार्था देशकालानुकूल्येन यथोचितं सेविता हितकरा विरुद्धं सेविताश्च शत्रुवद् दुःखदा भवन्ति ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जितेंद्रिय माणसांना ज्याप्रमाणे इंद्रिये मित्रांप्रमाणे हितकारक असतात तसे जल वगैरे पदार्थही देशकाल परिस्थितीनुसार उपयोगात आणल्यास हितकारक ठरतात व विरुद्ध उपयोग केल्यास शत्रूंप्रमाणे दुःखदायक असतात.